भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे?

भारत में सभी मंत्रियों के पद के जैसा राष्ट्रपति का पद भी एक सर्वोच्च पद माना जाता है इस  पद में योग्य भारत के नागरिक जिनकी उम्र 35 वर्ष या इससे अधिक हो उन्हें इस पद पर नियुक्त किया जाता है. ऐसे बहुत विद्यार्थी हैं जिन्हें वर्तमान के राष्ट्रपति का नाम तो पता होता है लेकिन पूर्व और प्रथम राष्ट्रपति का नाम नहीं पता होता इसलिए आज हम आपको अपने आर्टिकल के माध्यम से बताएंगे कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे?

हमारे देश में अब तक कुल 13 राष्ट्रपति बने हैं, जो नागरिक इस पद पर नियुक्त होता है वह अपने पद के कार्य को धैर्य और संयम के साथ साथ ईमानदारी पूर्वक करता है जिससे अपना देश आगे बढ़ सके. 

राष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा राज्यसभा और राज्यों की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है जिसमें योग्य नागरिक को इस पद पर इन सदस्यों द्वारा नियुक्त किया जाता है.

भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे?

भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्व. श्री राजेंद्र प्रसाद थे जिन्होंने भारत आजाद होने के बाद 26 जनवरी 1950 ईस्वी को राष्ट्रपति के पद पर नियुक्त हुए. इन्होंने 13 मई 1962 तक इस पद पर नियुक्त होकर  अपने देश के  कार्यभार को  संभाला था. डॉ राजेंद्र प्रसाद पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्होंने  दो बार राष्ट्रपति बने.

डॉ राजेंद्र प्रसाद सकारात्मक और उच्च विचार के व्यक्ति थे जिन्होंने हर एक कार्य अपने देश के प्रति सच्ची निष्ठा और इमानदारी से किए थे.

डॉ राजेंद्र प्रसाद की जीवनी:-

डॉ राजेंद्र प्रसाद एक महान और  सद विचारों वाले भारतीय महापुरुष थे, उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यों को करके भारत की स्वतंत्रता में अपना बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है.

हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति भारतीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी बने थे. 1946 से 1947 तक इन्होंने कृषि और खाद्य मंत्री के पद का इस्तेमाल  करके कृषि लोगों को लाभ पहुंचाए थे.

जन्म और प्रारंभिक जीवन:-

हमारे प्रथम राष्ट्रपति भारतीय स्वतंत्रता सेनानी भी थे जिन्होंने भारत को आजाद करवाने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिए. सभी देश वीरों के नाम में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का भी नाम भी मुख्य रूप से लिया जाता  है जो भारत को आजाद करने में बल और मस्तिक दोनों का उपयोग बहुत ही बेहतरीन तरीके से किए हैं जिससे हमारा देश आजाद हुआ है.

सभी महा वीरों के जैसा डॉ राजेंद्र प्रसाद भी भारत की आजादी में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और भारत को आजाद करवाने में नियंत्रण प्रयास में जुटे रहे. आज हमारा देश आजाद है तो इसमें डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है.

इस महत्वपूर्ण देश वीर का जन्म 3 सितंबर 1884 में बिहार राज्य के तत्कालीन सारण जिले के जीरादेई नामक स्थान पर हुआ. बचपन से ही इस महावीर के रगों में देश के प्रति सच्ची निष्ठा की भावना प्रतीत होती थी.

इनके पिता महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था. इनके पिता का काम हथुआ का था जिसमें वे हथुआ के सारे कार्यभार को संभालते थे.

डॉ राजेंद्र प्रसाद जब 5 साल के थे उस समय से इनके माता-पिता द्वारा इनको एक मौलवी के यहां कुछ भाषाओं के ज्ञान को अर्जित करने के लिए भेजा जाता था जैसे फारसी ,उर्दू इत्यादि.

डॉ राजेंद्र प्रसाद अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिहार राज्य के छपरा जिले के एक स्कूल से की थी उसके बाद 18 साल की आयु में कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रवेश परीक्षा में फर्स्ट रैंक लाए और एडमिशन करवाया. 

वही के प्रेसिडेंसी कॉलेज से इन्होंने ग्रेजुएशन किया और लॉ में डॉक्टर का पद हासिल किया. इन्होंने वकील पद को भी हासिल किया जिससे परिवार का नाम चर्चा में आया जिससे इनके  फैमिली इनके प्रति गर्व महसूस करते थे.

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का व्यवहार:-

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का व्यवहार बहुत ही सरल और गंभीर था वह कभी किसी भी वर्गीय व्यक्ति पर किसी प्रकार की भेदभाव नहीं की जहां तक संभव हुआ वह हर एक व्यक्ति को समान रूप से इज्जत दिए और उनके नजरों में सभी व्यक्ति एक समान ही होते थे वे कभी किसी के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया जहां तक संभव होता था वे लोगों की मदद करने में हमेशा आगे रहते.

बिहार में  नील की खेती करने वाले किसानों को उचित दाम नहीं मिलता था उस समय गांधी जी के द्वारा एक सत्याग्रह आंदोलन चलाया गया था जिसमें वे  गांधी जी से मिले थे.

गांधी जी से मिलने के दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद इनके विचारों के साथ-साथ इनके हर एक कार्य को महत्व देते थे और उनके विचारों से डॉ राजेंद्र प्रसाद बहुत ही ज्यादा आकर्षित हुए और गांधी जी को अपना आदर्श माना. इतना ही नहीं बल्कि गांधी जी के साथ मिलकर भारत की आजादी में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने बहुत ही बड़ा योगदान दिया है.

स्वतंत्रता संग्राम में पदार्पण:-

डॉ राजेंद्र प्रसाद महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते थे इसलिए उनके बताए हुए रास्ते में चलना यह ज्यादा पसंद करते थे और उस समय भारत की स्वतंत्रता के लिए गांधीजी हर एक महत्वपूर्ण कार्य को किए थे जिससे हमारा भारत देश आजाद हो सके और इन्हीं आजादी की प्रक्रियाओं में साथ देने के लिए डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर पद को रिजेक्ट करके देश की आजादी में महात्मा गांधी का साथ दिया.

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के द्वारा कई अखबारों में दुश्मनों के प्रति अनेक प्रकार के लेख लिखे गए. जिस समय विदेशी लोगों का बहिष्कार हो रहा था उस दौरान उन्होंने अपने पुत्र को कोलकाता विश्वविद्यालय से नाम कटवा कर बिहार के विद्यापीठ विद्यालय में एडमिशन करवा दिया. भूकंप और बाढ़ से गुजरे लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य इनके द्वारा किया गया है.

डॉ राजेंद्र प्रसाद के नौकरी छोड़ने का कारण:-

1919 ईस्वी में भारत देश में हर जगह आजादी के प्रति आंदोलन का लहर फैला हुआ था इसी बीच महात्मा गांधी के द्वारा सारे कार्यालय स्कूल एवं अन्य दुकानें बंद करवा दी गई और सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार किया गया.

इसी दौरान भारत की आजादी के लिए चलाए गए इस आंदोलन के समय डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी नौकरी छोड़ दी और महात्मा गांधी के साथ इस आंदोलन में भागीदारी ली.

डॉ राजेंद्र प्रसाद के गिरफ्तारी का कारण:-

1921 ईस्वी में कांग्रेस द्वारा आंदोलन छेड़ दिया गया था 1934 ईस्वी में डॉ राजेंद्र प्रसाद को मुंबई का अध्यक्ष बनाया गया था भारत छोड़ो आंदोलन में डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भागीदारी ली जिस कारण उन्हें दो से तीन बार जेल जाना पड़ा.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष:-

सुभाष चंद्र बोस के द्वारा जब अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिया गया तब 1934 ईस्वी में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद को बनाया गया. 1942 ईस्वी में उन्होंने भारत की आजादी के लिए छेड़े गए आंदोलन जिसका नाम भारत छोड़ो आंदोलन था इसमें पार्टिसिपेट किए जिस कारण इन्हें दो से तीन बार जेल हुआ और लोगों की नजर से इन्हें दूर भी रखा गया.

भारत के प्रथम राष्ट्रपति की शपथ:-

1947 ईस्वी में जब हमारा देश आजाद हुआ उसके 3 साल पश्चात 1950 में हमारे देश का संविधान लागू होने के साथ-साथ डॉ राजेंद्र प्रसाद के रूप में हमारे देश को प्रथम राष्ट्रपति मिला. हमारे देश के  ये पहले राष्ट्रपति है, जो एक नहीं बल्कि 2 बार राष्ट्रपति पद पर नियुक्त हुए.

डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारत रत्न से कब सम्मानित किया गया?

1962 में इस महान पुरुष को देश का सर्वश्रेष्ठ भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इनके द्वारा भारत देश के लिए अनेक प्रकार के महत्वपूर्ण कार्यों को किया गया है जिसको देखते हुए डॉ राजेंद्र प्रसाद को सर्वश्रेष्ठ भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया. डॉ राजेंद्र प्रसाद कभी किसी व्यक्ति के प्रति नकारात्मक सोच अपने विचार में नहीं लाएं बल्कि हर एक व्यक्ति के प्रति अपना दया दृष्टि हमेशा प्रदर्शित करते रहते थे.

हमारे भारत देश को आजाद करवाने में सभी महापुरुषों के जैसा डॉ राजेंद्र प्रसाद  भी अहम भूमिका निभाए है. डॉ राजेंद्र प्रसाद एक  नेक और सरल स्वभाव के नेता थे लेकिन जब बात आंदोलन की आती थी तब उनके अंदर देशभक्ति की ज्वाला भड़क उठती थी. 

इतना ही नहीं बल्कि यह आंदोलन में पार्टिसिपेट करने के साथ-साथ गरीब लोगों को भी अनेक प्रकार से मदद की है यहां तक कि भूकंप और बाढ़ से पीड़ित लोगों को आसरा देना और उनकी जिंदगी को खुशमय इन्ही के द्वारा बनाया गया. 

भारत जनता के प्रति यह हमेशा सकारात्मक सोच रखते थे और राष्ट्रपति के पद पर नियुक्त होने के बाद बहुत से महत्वपूर्ण कार्य किए हैं जिससे भारत जनता को लाभ पहुंचा है.

डॉ राजेंद्र प्रसाद की मृत्यु कब हुई?

इन्होंने अपने देश के प्रति हर एक कार्य को किया जिससे हमारे देश की जनता को  लाभ पहुंचा है, राष्ट्रपति के पद पर नियुक्त होकर अपने देश के साथ-साथ जनता की हर एक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण कार्य को इनके द्वारा किया गया है. अंत में इनकी मृत्यु 28 फरवरी 1963 ईस्वी में हो गई.

निष्कर्ष

हमारे प्रथम राष्ट्रपति बहुत ही महान और नेक नेता थे जिन्होंने अपने उच्च विचारों से अपने देश के प्रति महत्वपूर्ण कार्यों को किए हैं, बच्चों को वर्तमान के राष्ट्रपति का ज्ञान होने के साथ-साथ हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति की भी जानकारी जाननी चाहिए क्योंकि ये प्रश्न अक्सर एग्जाम में पूछे जाते हैं. 

आज हमने इस आर्टिकल के माध्यम से बताया कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे? आशा है आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आया हो और इस आर्टिकल के माध्यम से हमारे प्रथम राष्ट्रपति की जानकारी आपको मिली हो.

Wasim Akram

वसीम अकरम WTechni के मुख्य लेखक और संस्थापक हैं. इन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है लेकिन इन्हें ब्लॉगिंग और कैरियर एवं जॉब से जुड़े लेख लिखना काफी पसंद है.

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